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हमारे समाज की बहोत ही दु:खद और वास्तविक कविता।
मुह इनके गोरे और दिल इनके काले है.
इनके नीयत से साफ़ तो गटर और नाले है.
उसकी जिंदगी नहीं मिलती थी,
तुम्हारी दरिंदगी दिखने को.
उसकी रूह को मिटा के अपने हवस को छुपाया है.
इंसानियत बची है या उसको भी जलाया है?
धित्कार है हम पे जो तुम अभी भी जिन्दा हो.
जन्म देने वाली ही नहीं पुरे मर्द जात शर्मिंदा है.
और फिर बलात्कारी जंगली कुत्तों की तरह खुले छोड़ दिए जायेंगे.
समाज नहीं बोलेगा सबके मुंह पे ताला है,
जब कि पता है कल उनके बेटियों के साथ भी यही होने वाला है
मुह इनके गोरे और दिल इनके काले है.
इनके नीयत से साफ़ तो गटर और नाले है.
~Sneha Vishwakarma
5 Comments
its very true poem.Excellent
ReplyDeleteThanks for comment... poet thankful for you
DeleteVery nice poem...It just amazing...
ReplyDeleteThank you from Poet...
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