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मुह इनके गोरे और दिल इनके काले हे. - हमारे समाज की बहोत ही दु:खद और वास्तविक कविता।


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हमारे समाज की बहोत ही दु:खद और वास्तविक कविता।


मुह इनके गोरे और दिल इनके काले है.
इनके नीयत से साफ़ तो गटर और नाले है.

उसकी जिंदगी नहीं मिलती थी, 
तुम्हारी दरिंदगी दिखने को.

उसकी रूह को मिटा के अपने हवस को छुपाया है.
इंसानियत बची है या उसको भी जलाया है?

धित्कार है हम पे जो तुम अभी भी जिन्दा हो.
जन्म देने वाली ही नहीं पुरे मर्द जात शर्मिंदा है.

आ गए दिखावा करने अब कैंडल जलाने नारे लगाएंगे.
और फिर बलात्कारी जंगली कुत्तों की तरह खुले छोड़ दिए जायेंगे.

समाज नहीं बोलेगा सबके मुंह पे ताला है,
जब कि पता है कल उनके बेटियों के साथ भी यही होने वाला है

मुह इनके गोरे और दिल इनके काले है.
इनके नीयत से साफ़ तो गटर और नाले है.



~Sneha Vishwakarma

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